Thursday, June 30, 2011

Aa K Le Jaye Meri Aankh Ka Paani Mujh Se,

Aa K Le Jaye Meri Aankh Ka Paani Mujh Se,


Kiun Hasad Karti Hai Darya Ki Rawani Mujh Se..


Gosht Nakhun Se Alag Ker K Dikhaya Main Ne,


Usne Poochay Thay Judai K Ma'ani Mujh Se..


Khatam Hone Laga Jab Khoon Bhe Ashkon Ki Tarah,


Ker Gaye Khawab Mere Nakal Makaani Mujh Se..


Sirf Ek Shakhs K Gham Mein Muje Barbaad Na Ker,


Roz Rotay Huay Kehti Hai Jawani Mujh Se..

uski nigah bhi to dekh jisne

koi dawa na de sake, mashwara dua diya
charagaron ne aur bhi dil ka dard barha diya

zauq-e-nigah k siwa shauq-e-gunah k siwa
mujhko Khuda se kya mila mujhko buton ne kya diya

thi na khizan ki rok-tham daman-e-ikhtiyar mein
hamne bhari bahar mein apna chaman luta diya

husn-e-nazar ki abaru sanat-e-brahaman se hai
jisko sanam samajh liya usko Khuda bana diya

dag hai mujhpe ishq ka mera gunah bhi to dekh
uski nigah bhi to dekh jisne ye gul khila diya

ek wada hai kisi ka

ek wada hai kisi ka jo wafa hota nahin
marmari taron bhari raton mein kya hota nahin

ji mein ata hai ulat dein un k chehre se naqab
hausla karte hain lekin hausla hota nahin

shama jis ki abru par jan de de jhum kar
wo patanga jal to jata hai fana hota nahin

Thursday, June 16, 2011

जान के लिए तोड़ दूं दोस्ती…….

जान के लिए तोड़ दूं दोस्ती…….

दोस्त एक साहिल है तुफानो के लिए ,
दोस्त एक आइना है अरमानो के लिए ,
दोस्त एक महफ़िल है अंजानो के लिए ,
दोस्ती एक ख्वाहिश है आप जैसे दोस्त को पाने के लिए !!

जान है मुझको ज़िन्दगी से प्यारी ,
जान के लिए कर दूं कुर्बान यारी ,
जान के लिए तोड़ दूं दोस्ती तुम्हारी ,
अब तुमसे क्या छुपाना ,
तुम ही तोह हो जान हमारी !
दोस्ती के नाम को न बदनाम करो
मेरे भरोसे को न बदनाम करो ,
मेरी दोस्ती को अपना लेना
हमसे एक बार हाथ मिला लेना …

आँखों में है गम के …

आँखों में है गम के ……….

ज़िन्दगी  के हर वोह हसीन
पल बीत जातें है…..
मगर रह जाती है, तो सिर्फ  यादें
ज़िन्दगी  बीत जाती है उन
यादों को याद करके
लेकिन  दुःख भी घिर  जाते है …
ये सोचकर की
वो ज़िन्दगी  के पल फिर
दुबारा वापस नहीं आएंगे …..


आँखों  में  है  गम  के  आंसू और  होठो  पे  फरयाद  है,
अब  क्या  है  पास  हमारे  बस  एक  उसकी  याद  है,
उसके  लाखो  है  गम ,  मेरा  एक   है  गम   मैं  क्या  करू,
उसके  बिन  दिल  न  लगे  अब  तो  मैं  क्या  करू|

वो  बेवफा  मेरा  इम्तिहान  क्या  लेगी
मिलेगी  नज़र  तो  नज़र  झुका  लेगी
मेरी  कबर  पर  उसे  दिया  मत  जलने  देना  यारों
वो  नादान  है  अपना  हाथ  जला  लेगी|

उसका चेहरा भी कमल का

उसका चेहरा भी कमल का………..

उसके चेहरे में कुछ न कुछ जरूर था,
बिन पिए मैं नशे में चूर था,
उसका चेहरा भी कमल का एक फूल था,
जिसकी खुशबु से महका मेरा नसीब था|
मेरी ख़ुशी को न समझाने वाले, इंतना तो समझ ज़रा,
साँसों की आहतो को गिन ज़रा, खुश्बू इनकी क्या कहती है|
जिंदगी मेरी तुझसे शुरू और, तुझ पे ही खत्म होती है,
हर सुबह एक आस होती है, दिल में तुझसे मिलने की प्यास होती है|
तू समझता नहीं या, समझना चाहता नहीं,
किसी के बिना ज़िन्दगी अधूरी है मानता नहीं|
या मेरे हालात को जानता नहीं, दिल में तू है अब मान भी ले|
कैसे इज़हार करू बता दे, इस मोह्बत को मान भी ले|

दिल के ज़ख्मो पर मत………..

दिल के ज़ख्मो पर मत………..

हमसे कोई गिला हो जाये तो माफ़ करना ,
याद न कर पाए तो माफ़ करना,
दिलसे तो हम आपको कभी भूलते नहीं,
पर यह दिल ही रुक जाये तो माफ़ करना|
दिल के ज़ख्मो पर मत रो मेरे यार,
वक़्त हर ज़ख्म का मरहम होता है,
दिल से जो सच्चा प्यार करे,
उनका तो खुदा भी दीवाना होता है|
बड़ी आसानी से दिल लगाये जाते है,
पर बड़ी मुश्किल से वादे निभाए जाते है,
ले जाती है मोहब्बत उन राहों पर,
जहाँ दिये नहीं दिल जलाये जाते है|

Saturday, June 11, 2011

एक अनोखा बंधन----3 Hindi Love Story


एक अनोखा बंधन----3

गतान्क से आगे.............

ज़रीना रास्ते भर किन्ही गहरे ख़यालो में खोई रहती है. अदित्य भी चुप रहता है.


एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलमपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”


“ह्म्म…..भैया यही उतार दो. आदित्य, मौसी का घर सामने वाली गली में है” ज़रीना ने कहा.

"शूकर है तुम कुछ तो बोली." अदित्य ने कहा.

"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."

"अछा-अछा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.

ज़रीना ऑटो से उतरती है. "अदित्य आइ आम सॉरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."

"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."

"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाउन्गि"

"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." अदित्य ने मुस्कुराते हुवे कहा.

ज़रीना ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"

थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. आदित्य ज़रीना को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" अदित्य ने कहा.

“आदित्य अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”


“सुक्रिया उस खुदा का करो जिसने हमे इंसान बनाया है…. मेरा सुक्रिया क्यों करोगी?”

“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”

“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”


“ठीक है अदित्य अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”

“और उस हॉकी का क्या?”

ज़रीना शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”


“ठीक है बाबा जाओ अब…. लोग हमें घूर रहे हैं”


ज़रीना भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और अदित्य उसे जाते हुवे देखता रहता है.

वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.

ज़रीना गली में घुस कर पीछे मूड कर अदित्य की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाइ करते हैं. उनकी दर्द भारी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है. पर दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुवे भी एक अनोखे बंधन में बँध चुके हैं. प्यार के बंधन में.


जब ज़रीना गली में ओझल हो जाती है तो अदित्य मूड कर भारी मन से चल
पड़ता है.

“पता नही कैसे जी पाउन्गा ज़रीना के बिना मैं? काश! एक बार उसे अपना दिल चीर कर दीखा पाता…क्या वो भी मुझे प्यार करती है? लगता तो है. पर कुछ कह नही सकते”अदित्य चलते-चलते सोच रहा है.


अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है

“आदित्य!!! रूको….”

आदित्य मूड कर देखता है.

उसके पीछे ज़रीना खड़ी थी. उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.

“अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो अपने, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना
चाहिए”

“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है अदित्य… मुझे खुद से दूर मत करो”


आदित्य की भी आँखे छलक उठती हैं और वो दौड़ कर ज़रीना को गले लगा कर
कहता है, “क्यों जा रही थी फिर तुम मुझे छ्चोड़ कर?”

“तुम मुझे रोक नही सकते थे?” ज़रीना ने गुस्से में पूछा.

“रोक तो लेता पर यकीन नही था कि तुम रुक जाओगी”

“तुम कह कर तो देखते” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

“ओह्ह…ज़रीना आइ लव यू…”

“पता नही क्यों.... बट आइ लव यू टू अदित्य” ज़रीना ने कहा.

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वापिस कैसे जाउन्गा”

“और मैं सोच रही थी कि तुम्हारे बिना कैसे जी पाउन्गि”



“अछा हुवा तुम वापिस आ गयी वरना देल्ही से मेरी लाश ही जाती”

“ऐसा मत कहो… मैं वापिस क्यों नही आती. अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा को तो खो चुकी हूँ, तुम्हे नही खो सकती अदित्य”

उन्हे उस पल किसी बात का होश नही रहता. प्यार और होश शायद मुस्किल से साथ चलते हैं.

“पता है…मैं तुम्हे बिल्कुल लाइक नही करता था”

“मैं भी तुमसे बहुत नफ़रत करती थी”

“ऐसा कैसे हो गया? ये सब सपना सा लगता है” अदित्य ने कहा

“ये तो पता नही…पर मुझे हमेशा अपने पास रखना अदित्य, तुम्हारे बिना मैं नही जी सकती”

“तुम मेरी जींदगी हो ज़रीना, मेरे पास नही तो और कहा रहोगी”

“पर अब हम जाएँगे कहा…. मुझे नही लगता कि हम दोनो उस नफ़रत के माहॉल में रह पाएँगे?”

“चिंता मत करो, प्यार हुवा है तो इस प्यार के लिए कोई ना कोई सुकून भरा
आसियाना भी ज़रूर मिल जाएगा”

दोनो हाथो में हाथ ले कर चल पड़ते हैं किसी अंजानी राह पर जिसकी
मंज़िल का भी उन्हे नही पता. प्यार की राह पर मंज़िल की वैसे परवाह भी कौन करता है.


जिस तरह नदी पहाड़ को चीर कर अपना रास्ता बना लेती है. उसी तरह प्यार
भी इस कठोर दुनिया में अपने लिए रास्ते निकाल ही लेता है. तभी शायद
इतनी नफ़रत के बावजूद भी दुनिया में प्यार… आज भी ज़ींदा है.

-- समाप्त.........


Ek Anokha Bandhan----3

gataank se aage.............

Zarina raaste bhar kinhi gahre khayaalo mein khoyi rahti hai. aditya bhi chup rahta hai.


Ek ghante baad Auto wala silampur ki market mein auto rok kar puchta hai, “kaha jaana hai… koyi pata-address hai kya?”


“Hmm…..bhaiya yahi utaar do. Aditya, mausi ka ghar saamne wali gali mein hai” zarina ne kaha.

"shukar hai tum kuch to boli." aditya ne kaha.

"tum bhi to chup baithe the moni baba ban kar...kya tum kuch nahi bol sakte the."

"acha-acha ab utro bhi...auto waala shun raha hai." dono ke beech takraar shuru ho jaati hai.

Zarina auto se utarti hai. "aditya i am sorry par tum kuch bol hi nahi rahe the."

"theek hai koyi baat nahi. Shaanti se apne ghar jaao...mujhe bhul mat jaanta."

"tumhe bhulna bhi chaahun to bhi bhula nahi paaungi"

"dekha ho gayi na apni baate shuru." aditya ne muskuraate huve kaha.

Zarina ne ush gali ki aur dekha jishme ushki mausi ka ghar tha aur gahri saans li. "chalu main phir"

Thodi der dono mein khaamosi bani rahti hai. Aditya zarina ko dekhta rahta hai. "jaate jaate kuch kahogi nahi" aditya ne kaha.

“Aditya ab kya kahun…tumhaara sukriya karun bhi to kaise, samajh nahi aata”


“Sukriya us khuda ka karo jisne hame insaan banaaya hai…. mera sukriya kyon karogi?”

“Kabhi khaana bura bana ho to maaf karna, aur jaldi shaadi kar lena, tum akele nahi rah paaoge”

“theek hai..theek hai….ab rulaaogi kya.. chalo jao apni mausi ke ghar”


“Theek hai aditya apna khyaal rakhna aur haan maine jo us din tumhaare sar par flower pot maara tha uske liye mujhe maaf kar dena”

“Aur us hokey ka kya?”

Zarina Sharma kar muskura padti hai aur kahti hai, “haan uske liye bhi”


“Theek hai baba jao ab…. log hamein ghur rahe hain”


Zarina bhaari kadmo se mud kar chal padti hai aur aditya use jaate huve dekhta rahta hai.

Vo ushe peeche se awaaj dene ki koshis karta hai par ushke muh se kuch bhi nahi nikal paata.

Zarina gali mein ghuss kar peeche mud kar aditya ki taraf dekhti hai. Dono ek dusre ko ek dard bhari muskaan ke saath bye karte hain. Unki dard bhari muskaan mein unka unkaha pyar ubhar aata hai. Par dono abhi bhi ish baat se anjaan hain ki vo na chaahte huve bhi ek anokhe bandhan mein bandh chuke hain. Pyar ke bandhan mein.


Jab zarina gali mein ojhal ho jaati hai to aditya mud kar bhaari man se chal
padta hai.

“Pata nahi Kaise ji paaunga zarina ke bina main? Kaash! Ek baar ushe apna dil cheer kar deekha pata…Kya vo bhi mujhe pyar karti hai? Lagta to hai. Par kuch kah nahi sakte”aditya chalte-chalte soch raha hai.


Achaanak use peeche se awaaj aati hai

“Aditya!!! Ruko….”

Aditya mud kar dekhta hai.

Ushke peeche zarina khadi thi. Ushki aankho se aanshu bah rahe the.

“Arey tum ro rahi ho… tumhe to apne, apno ke paas jaate vakt khus hona
chaahiye”

“Tum se jyada mera apna kaun ho sakta hai aditya… mujhe khud se dur mat karo”


Aditya ki bhi aankhe chalak uthti hain aur vo daud kar zarina ko gale laga kar
kahta hai, “kyon ja rahi thi phir tum mujhe chhod kar?”

“Tum mujhe rok nahi sakte the?” zarina ne gusse mein pucha.

“Rok to leta par yakin nahi tha ki tum ruk jaaogi”

“Tum kah kar to dekhte” zarina subakte huve boli.

“Ohh…zarina I Love You…”

“pata nahi kyon.... but I Love you too aditya” zarina ne kaha.

“Mujhe kuch samajh nahi aa raha tha ki vaapis kaise jaaunga”

“Aur main soch rahi thi ki tumhaare bina kaise ji paaungi”



“Acha huva tum vaapis aa gayi varna delhi se meri laash hi jaati”

“Aisa mat kaho… main vaapis kyon nahi aati. Ammi,abba aur fatima ko to kho chuki hun, tumhe nahi kho sakti aditya”

Unhe us pal Kisi baat ka hosh nahi rahta. Pyar aur hosh shaayad muskil se saath chalte hain.

“Pata hai…main tumhe bilkul like nahi karta tha”

“Main bhi tumse bahut nafrat karti thi”

“Aisa kaise ho gaya? Ye sab sapna sa lagta hai” aditya ne kaha

“Ye to pata nahi…par mujhe hamesha apne paas rakhna aditya, tumhaare bina main nahi ji sakti”

“Tum meri jeendagi ho zarina, mere paas nahi to aur kaha rahogi”

“Par ab hum jaayenge kaha…. mujhe nahi lagta ki hum dono us nafrat ke maahol mein rah paayenge?”

“Chinta mat karo, pyar huva hai to is pyar ke liye koyi na koyi sukun bhara
aasiyana bhi jaroor mil jaayega”

dono haatho mein haath ley kar chal padte hain kisi anjaani raah par jiski
manjil ka bhi unhe nahi pata. Pyar ki raah par manjil ki vaise parvaah bhi kaun karta hai.


Jis tarah nadi pahaad ko cheer kar apna raasta bana leti hai. Usi tarah pyar
bhi is kathor duniya mein apne liye raaste nikaal hi leta hai. Tabhi shaayad
itni nafrat ke baavjud bhi duniya mein pyar… aaj bhi zeenda hai.

-- samaapt.........

एक अनोखा बंधन----2 Hindi Love Story


एक अनोखा बंधन----2

गतान्क से आगे.............
“क्या मैं किसी तरह देल्ही पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वाहा?”


“चिंता मत करो, माहॉल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”


ज़रीना अदित्य की ओर देख कर सोचती है, “कभी सोचा भी नही था कि जिस
इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना
बनाउन्गि”

आदित्य भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना
भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ. शायद
यही इंसानियत है”

धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो आछे दोस्त बनते जाते हैं. एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.

वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से. कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं. वो दोनो वक्त की कड़वाहट को
भुलाने की पूरी कॉसिश कर रहे हैं.

एक दिन अदित्य ज़रीना से कहता है, “तुम चली जाओगी तो ना जाने कैसे रहूँगा
मैं यहा. तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है. कौन मेरे लिए
अछा-अछा खाना बनाएगा. समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”


“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”

“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”

“तो मुझे फोन किया करना”


ज़रीना को भी अदित्य के साथ की आदत हो चुकी है. वो भी वाहा से जाने के
ख्याल से परेशान तो हो जाती है, पर कहती कुछ नही.



आफ्टर वन मंथ: --


“ज़रीना, उठो दिन में भी सोती रहती हो”

“क्या बात है? सोने दो ना”


“करफ्यू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकेट बुक करा कर आता हूँ. तुम किसी
बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आ जाउन्गा”

“अपना ख्याल रखना अदित्य”

“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकारण कहीं की…हे..हे..हे….”


“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” --- ज़रीना अदित्य के उपर तकिया फेंक कर
बोलती है

आदित्य हंसते हुवे वाहा से चला जाता है.

जब वो वापिस आता है तो ज़रीना को किचन में पाता है

“बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी”

“5 दिन और का मतलब? ……मुझे क्या यहा कोई तकलीफ़ है?”

“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”

ज़रीना अदित्य के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता
है

“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाउ?”

“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था बाबा. ऐसा चाहता तो टिकेट क्यों बुक
कराता?” -- ये कह कर अदित्य वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता
की उसकी आँखे कब नम हो गयी.

इधर ज़रीना मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि”

वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं. आदित्य ज़रीना से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता. ज़रीना भी बार-बार अदित्य को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर अदित्य के सामने आने पर उसके होन्ट सिल जाते हैं.


जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते
करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट
की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.

सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.

कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है


वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है

“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”

“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”

“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”


ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो
अदित्य”

“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.

एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.




----------------------

5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.


ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”

“क्या? ”

“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”

“सच!!!!”

“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”


“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”


“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”

“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा

“कुछ नही”

आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”

जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.

ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता


ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता
नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.


“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.

ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.


“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.

“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”


“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”

ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.


आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.
क्रमशः............






Ek Anokha Bandhan----2

gataank se aage.............
“Kya main kisi tarah delhi pahunch sakti hun, meri mausi hai vaha?”


“Chinta mat karo, maahol theek hote hi sabse pehla kaam yahi karunga”


Zarina aditya ki aur dekh kar sochti hai, “kabhi socha bhi nahi tha ki jish
insaan se main baat bhi karna pasand nahi karti, uske liye kabhi khaana
banaaungi”

Aditya bhi man mein sochta hai, “kya khel hai kismat ka? jish ladki ko dekhna
bhi pasand nahi karta tha, uske liye aaj kuch bhi karne ko taiyaar hun. Shaayad
yahi insaaniyat hai”

Dheere-dheere vakt beet-ta hai aur dono ache dost bante jaate hain. Ek dusre ke prati unke dil mein jo nafrat thi vo na jaane kaha gaayab ho jaati hai.

Vo 24 ghante ghar mein rahte hain. Kabhi pyar se baat karte hain kabhi takraar se. kabhi hanste hain aur kabhi rote hain. Vo dono vakt ki kadvaahat ko
bhulaane ki puri kosish kar rahe hain.

Ek din aditya zarina se kahta hai, “tum chali jaaogi to na jaane kaise rahunga
main yaha. Tumhaare saath ki aadat si ho gayi hai. Kaun mere liye
acha-acha khaana banaayega. Samajh nahi aata ki main tab kya karunga?”


“Tum shaadi kar lena, sab theek ho jaayega”

“Aur phir bhi tumhaari yaad aayi to?”

“To mujhe phone kiya karna”


Zarina ko bhi aditya ke saath ki aadat ho chuki hai. Vo bhi vaha se jaane ke
khyaal se pareshaan to ho jaati hai, par kahti kuch nahi.



After one month: --


“Zarina, utho din mein bhi shoti rahti ho”

“Kya baat hai? shone do na”


“Curfew khul gaya hai. Main train ki ticket book kara kar aata hun. tum kisi
baat ki chinta mat karna, main jaldi hi aa jaaunga”

“Apna khyaal rakhna aditya”

“Theek hai…sho jao tum kumbhkaran kahin ki…he..he..he….”


“Vaapis aao main tumhe bataati hun” --- zarina aditya ke upar takiya fenk kar
bolti hai

Aditya hanste huve vaha se chala jaata hai.

Jab vo vaapis aata hai to zarina ko kitchen mein paata hai

“Bas 5 din aur…phir tum apni mausi ke ghar par hogi”

“5 din aur ka matlab? ……Mujhe kya yaha koyi takleef hai?”

“To ruk jao phir yahin…agar koyi takleef nahi hai to”

Zarina aditya ke chehre ko bade pyar se dekhti hai. Uska dil bhaavuk ho uthta
hai

“Kya tum chaahte ho ki main yahin ruk jaaun?”

“nahi-nahi main to majaak kar raha tha baba. Aisa chaahta to ticket kyon book
karaata?” -- ye kah kar aditya vaha se chal deta hai. Use pata bhi nahi chalta
ki uski aankhe kab nam ho gayi.

Idhar zarina man hi man kahti hai, “tum rok kar to dekho main tumhe chhod kar kahin nahi jaaungi”

Vo 5 din un dono ke bahut bhaari gujarte hain. Aditya zarina se kuch kahna chaahta hai, par kuch kah nahi paata. Zarina bhi baar-baar aditya ko kuch kahne ke liye khud ko taiyar karti hai par aditya ke saamne aane par uske hont sil jaate hain.


Jish din zarina ko jaana hota hai, us se peechli raat dono raat bhar baate
karte rahte hain. Kabhi college ke dino ki, kabhi movies ki aur kabhi cricket
ki. kisi na kisi baat ke bahaane vo ek dusre ke saath baithe rahte hain. man hi man dono chaahte hain ki kaash kisi tarah baat pyar ki ho to acha ho. Par billi ke gale mein ghanti baandhe kaun ? Dono pyar ko dil mein dabaaye, duniya bhar ki baate karte rahte hain.

Subah 6 baje ki train thi. vo dono 4 baje tak baate karte rahe. Baate karte-karte unki aankh lag gayi aur dono baithe-baithe sofe par hi sho gaye.

koyi 5 baje Aditya ki aankh khulti hai. use apne paanv par kuch mahsus hota hai


Vo aankh khol kar dekhta hai ki zarina ne uske pairo par maatha tika rakha hai

“Arey!!!!!! ye kya kar rahi ho?”

“apne khuda ki ibaadat kar rahi hun, tum na hote to main aaj hargiz jeenda na hoti”

“Main kaun hota hun zarina, sab us bhagvaan ki kripa hai, chalo jaldi taiyaar ho jao, 5 baj gaye hain, hum kahin late na ho jaayein”


Zarina vaha se uth kar chal deti hai aur man hi man kahti hai, “mujhe rok lo
aditya”

“Kya tum ruk nahi sakti zarina...bahut acha hota jo hum hamesa ish ghar mein ek saath rahte.” aditya bhi man mein kahta hai.

Ek anokha bandhan dono ke beech jud chuka hai.




----------------------

5:30 baje aditya, zarina ko apni bike par railway station ley aata hai.


Zarina ko rail mein baitha kar aditya kahta hai, “ek surprise dun”

“Kya? ”

“Main bhi tumhaare saath aa raha hun”

“Sach!!!!”

“Aur nahi to kya… main kya aise maahol mein tumhe akele delhi bhejunga”


“Tum insaan ho ki khuda…kuch samajh nahi aata”


“Ek maamuli sa insaan hun jo tumhe…………”

“Tumhe… kya?” zarina ne pyar se pucha

“Kuch nahi”

Aditya man mein kahta hai, “……….jo tumhe bahut pyar karta hai”

Jo baat zarina sun-na chaahti hai, vo baat aditya man mein soch raha hai, aisa ajeeb pyar hai ushka.

Train chalti hai. Aditya aur zarina khub baate karte hain….baato-baato mein kab vo delhi pahunch jaate hain….unhe pata hi nahi chalta


Train se utarte vakt zarina ka dil bhaari ho uthta hai. Vo sochti hai ki pata
nahi ab vo aditya se kabhi mil bhi paayegi ya nahi.


“Arey soch kya rahi ho…utro jaldi” aditya ne kaha.

Zarina ko hosh aata hai aur vo bhaari kadmo se train se utarti hai.


“Chalo ab silampur ke liye auto karte hain” aditya ne ek auto waale ko ishaara kiya.

“Kya tum mujhe mausi ke ghar tak chod kar aaoge?”


“Aur nahi to kya… isi bahaane tumhaara saath thoda aur mil jaayega”

Zarina ye sun kar muskura deti hai.


Aditya ke ishaare se ek auto waala ruk jaata hai aur dono usme baith kar silampur ki taraf chal padte hain.
kramashah............



एक अनोखा बंधन----1 Hindi Love Story

एक अनोखा बंधन----1 Hindi Love Story


“ये मैं कहा हूँ. मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली ले कर सोई थी.
मैं यहा कैसे आ गयी ? किसका कमरा है ये ?”

आँखे खुलते ही ज़रीना के मन में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक
अंजाना भय उसके मन को घेर लेता है.


वो कमरे को बड़े गोर से देखती है. "कही मैं सपना तो नही देख रही" ज़रीना सोचती है.

"नही नही ये सपना नही है...पर मैं हूँ कहा?" ज़रीना हैरानी में पड़ जाती है.

वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी हो कर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.

"बिल्कुल शुनशान सा माहॉल है...आख़िर हो क्या रहा है."

ज़रीना को सामने बने किचन में कुछ आहट सुनाई देती है.

"किचन में कोई है...कौन हो सकता है....?"

ज़रीना दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देख कर उशके होश उड़ जाते हैं.

“अरे ! ये तो अदित्य है… ये यहा क्या कर रहा है...क्या ये मुझे यहा ले कर आया है...ईश्की हिम्मत कैसे हुई” ज़रीना दरवाजे पर खड़े खड़े सोचती है.

आदित्या उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी. आदित्य और ज़रीना के परिवारों में बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर अदित्य की मम्मी और ज़रीना की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी. इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में मशहूर था. अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कठ्ठा हो जाते थे.

ज़रीना और अदित्य भी एक दूसरे को देख कर बिल्कुल खुस नही थे. जब कभी
कॉलेज में वो एक दूसरे के सामने आते थे तो मूह फेर कर निकल जाते थे. हालत कुछ ऐसी थी कि अगर उनमे से एक कॉलेज की कॅंटीन में होता था तो दूसरा कॅंटीन में नही घुसता था. शूकर है कि दोनो अलग अलग सेक्षन में थे. वरना क्लास अटेंड करने में भी प्राब्लम हो सकती थी.

“क्या ये मुझ से कोई बदला ले रहा है ?” ज़रीना सोचती है.

अचानक ज़रीना की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लवर पोट पर पड़ी. उसने धीरे से फ्लवर पोट उठाया.

आदित्य को अपने पीछे कुछ आहट महसूस हुई तो उसने तुरंत पीछे मूड कर देखा. जब तक वो कुछ समझ पाता... ज़रीना ने उसके सर पर फ्लवर पोट दे मारा.

आदित्य के सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर गिर गया.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की." ज़रीना चिल्लाई.

ज़रीना फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गयी.

पर घर के बाहर पहुँचते ही उसके कदम रुक गये. उसकी आँखे जो देख रही थी उसे उस पर विश्वास नही हो रहा था. वो थर-थर काँपने लगी.

उसके अध-जले घर के बाहर उसके अब्बा और अम्मी की लाश थी और घर के
दरवाजे पर उसकी छोटी बहन फ़ातिमा की लाश निर्वस्त्र पड़ी थी. गली मैं
चारो तरफ कुछ ऐसा ही माहॉल था.


ज़रीना को कुछ समझ नही आता. उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगता है और वो फूट-फूट कर रोने लगती है.


इतने में अदित्य भी वाहा आ जाता है.

ज़रीना उसे देख कर भागने लगती है….पर अदित्य तेज़ी से आगे बढ़ कर उसका मूह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापिस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.


ज़रीना को सोफे के पास रखी हॉकी नज़र आती है.वो भाग कर उसे उठा कर अदित्य के पेट में मारती है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है. पर अदित्य जल्दी से संभाल कर उसे पकड़ लेता है

“पागल हो गयी हो क्या… कहा जा रही हो.. दंगे हो रहे हैं बाहर. इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हे देखते ही नोच-नोच कर खा जाएँगे”

ज़रीना ये सुन कर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे !! कैसे दंगे?”

“एक ग्रूप ने ट्रेन फूँक दी…….. और दूसरे ग्रूप के लोग अब घर-बार फूँक रहे हैं… चारो तरफ…हा-हा-कार मचा है…खून की होली खेली जा रही है”

“मेरे अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा ने किसी का क्या बिगाड़ा था” ---ज़रीना कहते हुवे
सूबक पड़ती है

“बिगाड़ा तो उन लोगो ने भी नही था जो ट्रेन में थे…..बस यू समझ लो कि
करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक षड्यंत्र है”

“तुम मुझे यहा क्यों लाए, क्या मुझ से बदला ले रहे हो ?”

“जब पता चला कि ट्रेन फूँक दी गयी तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था”

“हां-हां माइनोरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है”

“मेरे मा-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, ज़रीना...कोई भी अपना आपा खो देगा.”

“तो मेरी अम्मी और अब्बा कौन सा जिंदा बचे हैं.. और फ़ातिमा का तो रेप हुवा
लगता है. हो गया ना तुम्हारा हिसाब बराबर… अब मुझे जाने दो” ज़रीना रोते हुवे कहती है.

“ये सब मैने नही किया समझी… तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि फ़ातिमा का रेप
देखा नही गया मुझसे….अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर करफ्यू लगा है.
माहॉल ठीक होने पर जहाँ चाहे चली जाना”

“मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी”

ज़रीना किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नस
काटने लगती है

आदित्य भाग कर उसके हाथ से चाकू छीन-ता है और उसके मूह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.

ज़रीना थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने
लगती है.

“चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वहसी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया कि तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा”

“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो”

आदित्य कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.
ज़रीना रोते हुवे वापिस उसी कमरे में घुस जाती है जिसमे उसकी कुछ देर पहले आँख खुली थी.

-----------------------



अगली सुबह ज़रीना उठ कर बाहर आती है तो देखती है कि अदित्य खाना बना
रहा है.

आदित्य ज़रीना को देख कर पूछता है, “क्या खाओगि ?”

“ज़हर हो तो दे दो”

“वो तो नही है.. टूटे-फूटे पराठे बना रहा हूँ….यही खाने
पड़ेंगे..….आऊउच…” आदित्या की उंगली जल गयी.

“क्या हुवा…. ?”

“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”

“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”

“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”

ज़रीना कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”

“नही मैं बना लूँगा”

“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”

“एक शर्त पर हटूँगा”

“हां बोलो”

“तुम भी खाओगि ना?”

“मुझे भूक नही है”


“मैं समझ सकता हूँ ज़रीना, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर ज़ींदा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”

“किसके लिए ज़ींदा रहूं, कौन बचा है मेरा?”

“कल मैं भी यही सोच रहा था. पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने
का कोई मकसद मिल गया”


“पर मेरा तो कोई मकसद नही………”

“है क्यों नही? तुम इस दौरान मुझे अछा-अछा खाना खिलाने का मकसद बना लो… वक्त कट जाएगा. करफ्यू खुलते ही मैं तुम्हे सुरक्षित जहा तुम कहो वाहा पहुँचा दूँगा” – अदित्य हल्का सा मुस्कुरा कर बोला

ज़रीना भी उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली, “चलो हटो अब…. मुझे बनाने दो”

क्रमशः............


एक अनोखा बंधन----1


“ये मैं कहा हूँ. मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली ले कर शोय थी.
मैं यहा कैसे आ गयी ? किसका कमरा है ये ?”

आँखे खुलते ही ज़राइना के मान में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक
अंजाना भैईय उसके मान को घेर लेता है.


वो कमरे को बड़े गोर से देखती है. "कही मैं सपना तो नही देख रही" ज़राइना सोचती है.

"नही नही ये सपना नही है...पर मैं हूँ कहा?" ज़राइना हैरानी में पद जाती है.

वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी हो कर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.

"बिल्कुल शुनशान सा माहॉल है...आख़िर हो क्या रहा है."

ज़राइना को सामने बने किचन में कुछ आहत शुनाई देती है.

"किचन में कोई है...कौन हो सकता है....?"

ज़राइना दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देख कर उशके होश उड़ जाते हैं.

“अरे ! ये तो आदित्या है… ये यहा क्या कर रहा है...क्या ये मुझे यहा ले कर आया है...इश्कि हिम्मत कैसे हुई” ज़राइना दरवाजे पर खड़े खड़े सोचती है.

आदित्या उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी. आदित्या और ज़राइना के परिवारों में बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर आदित्या की मम्मी और ज़राइना की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी. इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में माशुर था. अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कथा हो जाते थे.

ज़राइना और आदित्या भी एक दूसरे को देख कर बिल्कुल खुस नही थे. जब कभी
कॉलेज में वो एक दूसरे के सामने आते थे तो मूह फेर कर निकल जाते थे. हालत कुछ ऐसी थी की अगर उनमे से एक कॉलेज की कॅंटीन में होता था तो दूसरा कॅंटीन में नही घुसता था. शूकर है की दोनो अलग अलग सेक्षन में थे. वरना क्लास अटेंड करने में भी प्राब्लम हो सकती थी.

“क्या ये मुझ से कोई बदला ले रहा है ?” ज़राइना सोचती है.

अचानक ज़राइना की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लवर पोत पर पड़ी. उसने धीरे से फ्लवर पोत उठाया.

अड़ीया को अपने पीछे कुछ आहत महसूस हुई तो उसने तुरंत पीछे मूड कर देखा. जब तक वो कुछ समझ पाता... ज़राइना ने उशके सर पर फ्लवर पोत दे मारा.

आदित्या के सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर गिर गया.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की." ज़राइना छील्लाई.

ज़राइना फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गयी.

पर घर के बाहर पहुँचते ही उशके कदम रुक गये. उष्की आँखे जो देख रही थी उशे उष पर विश्वास नही हो रहा था. वो तर-तर काँपने लगी.

उसके आध-जले घर के बाहर उसके अब्बा और अम्मी की लाश थी और घर के
दरवाजे पर उसकी छोटी बहन फ़ातिमा की लाश निर्वस्त्रा पड़ी थी. गली मैं
चारो तरफ कुछ ऐसा ही माहॉल था.


ज़राइना को कुछ समझ नही आता. उसकी आँखो के आयेज अंधेरा छाने लगता है और वो फूट-फूट कर रोने लगती है.


इतने में आदित्या भी वाहा आ जाता है.

ज़राइना उसे देख कर भागने लगती है….पर आदित्या तेज़ी से आयेज बढ़ कर उसका मूह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापिस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.


ज़राइना को सोफे के पास रखी होके नज़र आती है.वो भाग कर उसे उठा कर आदित्या के पेट में मार्टी है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है. पर आदित्या जल्दी से संभाल कर उसे पकड़ लेता है

“पागल हो गयी हो क्या… कहा जा रही हो.. दंगे हो रहे हैं बाहर. इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हे देखते ही नोच-नोच कर खा जाएँगे”

ज़राइना ये सुन कर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे !! कैसे दंगे?”

“एक ग्रूप ने ट्रेन फूँक दी…….. और दूसरे ग्रूप के लोग अब घर-बार फूँक रहे हैं… चारो तरफ…हा-हा-कार मचा है…खून की होली खेली जा रही है”

“मेरे अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा ने किसी का क्या बिगाड़ा था” ---ज़राइना कहते हुवे
सूबक पड़ती है

“बिगाड़ा तो उन लोगो ने भी नही था जो ट्रेन में थे…..बस यू समझ लो की
करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक शड्यंत्रा है”

“तुम मुझे यहा क्यों लाए, क्या मुझ से बदला ले रहे हो ?”

“जब पता चला की ट्रेन फूँक दी गयी तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था”

“हन-हन माइनोरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है”

“मेरे मा-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, ज़राइना...कोई भी अपना आपा खो देगा.”

“तो मेरी अम्मी और अब्बा कौन सा ज़ींदा बचे हैं.. और फ़ातिमा का तो रेप हुवा
लगता है. हो गया ना तुम्हारा हिसाब बराबर… अब मुझे जाने दो” ज़राइना रोते हुवे कहती है.

“ये सब मैने नही किया समझी… तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि फ़ातिमा का रेप
देखा नही गया मुझसे….अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर करफ्यू लगा है.
माहॉल ठीक होने पर जहाँ चाहे चली जाना”

“मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी”

ज़राइना किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नुस्स
काटने लगती है

आदित्या भाग कर उसके हाथ से चाकू चीन-ता है और उसके मूह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.

ज़राइना थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने
लगती है.

“चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वहासी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया की तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा”

“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो”

आदित्या कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.
ज़राइना रोते हुवे वापिस उशी कमरे में घुस्स जाती है जीशमें उष्की कुछ देर पहले आँख खुली थी.

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अगली सुबह ज़राइना उठ कर बाहर आती है तो देखती है की आदित्या खाना बना
रहा है.

आदित्या ज़राइना को देख कर पूछता है, “क्या खावगी ?”

“ज़हर हो तो दे दो”

“वो तो नही है.. टूटे-फूटे परानते बना रहा हूँ….यही खाने
पड़ेंगे..….आऊउच…” आदित्या की उंगली जल गयी.

“क्या हुवा…. ?”

“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”

“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”

“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”

ज़राइना कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”

“नही मैं बना लूँगा”

“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”

“एक शर्त पर हटूँगा”

“हन बोलो”

“तुम भी खावगी ना?”

“मुझे भूक नही है”


“मैं समझ सकता हूँ ज़राइना, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर ज़ींदा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”

“किसके लिए ज़ींदा रहूं, कौन बचा है मेरा?”

“कल मैं भी यही सोच रहा था. पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने
का कोई मकसद मिल गया”


“पर मेरा तो कोई मकसद नही………”

“है क्यों नही? तुम इस दौरान मुझे अछा-अछा खाना खिलाने का मकसद बना लो… वक्त काट जाएगा. करफ्यू खुलते ही मैं तुम्हे सुरकसिट जहा तुम कहो वाहा पहुँचा दूँगा” – आदित्या हल्का सा मुस्कुरा कर बोला

ज़राइना भी उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली, “चलो हटो अब…. मुझे बनाने दो”

क्रमशः............






Ek Anokha Bandhan----1


“Ye main kaha hun. main to apne kamre mein neend ki goli ley kar shoyi thi.
main yaha kaise aa gayi ? kiska kamra hai ye ?”

aankhe khulte hi zarina ke man mein hazaaron sawaal ghumne lagte hain. Ek
anjaana bhaiy uske man ko gher leta hai.


Vo kamre ko bade gor se dekhti hai. "kahi main sapna to nahi dekh rahi" zarina sochti hai.

"nahi nahi ye sapna nahi hai...par main hun kaha?" zarina hairaani mein pad jaati hai.

Vo himmat karke dheere se bistar se khadi ho kar dabe paanv kamre se baahar aati hai.

"bilkul shunshaan sa maahol hai...aakhir ho kya raha hai."

zarina ko saamne bane kitchen mein kuch aahat shunaayi deti hai.

"kitchen mein koyi hai...kaun ho sakta hai....?"

zarina dabe paanv kitchen ke darvaaje par aati hai. Ander khade ladke ko dekh kar ushke hosh ud jaate hain.

“arey ! ye to aditya hai… ye yaha kya kar raha hai...kya ye mujhe yaha ley kar aaya hai...ishki himmat kaise huyi” zarina darvaaje par khade khade sochti hai.

Aditya uska class mate bhi tha aur padosi bhi. Aditya aur zarina ke parivaaron mein bilkul nahi banti thi. aksar aditya ki mammi aur zarina ki ammi mein kisi na kisi baat ko ley kar kaha suni ho jaati thi. In padosiyon ka jhagda pure mohalle mein mashur tha. Aksar inki bhidant dekhne ke liye log ikkatha ho jaate the.

Zarina aur aditya bhi ek dusre ko dekh kar bilkul khus nahi the. Jab kabhi
college mein vo ek dusre ke saamne aate the to muh pher kar nikal jaate the. Haalat kuch aisi thi ki agar unme se ek college ki canteen mein hota tha to dusra canteen mein nahi ghusta tha. Shukar hai ki dono alag alag section mein the. Varna class attend karne mein bhi problem ho sakti thi.

“Kya ye mujh se koyi badla ley raha hai ?” Zarina sochti hai.

Achaanak zarina ki nazar kitchen ke darvaaje ke paas rakhe flower pot par padi. Ushne dheere se flower pot uthaaya.

Adiya ko apne peeche kuch aahat mahsus huyi to ushne turant peeche mud kar dekha. Jab tak vo kuch samajh paata... zarina ne ushke sar par flower pot de maara.

Aditya ke sar se khun bahne laga aur vo ladkhada kar gir gaya.

"tumhaari himmat kaise huyi mere saath aisi harkat karne ki." zarina cheellaayi.

Zarina fauran darvaaje ki taraf bhaagi aur darvaaja khol kar bhaag kar apne ghar ke baahar aa gayi.

Par ghar ke baahar pahunchte hi ushke kadam ruk gaye. Ushki aankhe jo dekh rahi thi ushe ush par vishvaas nahi ho raha tha. Vo thar-thar kaanpne lagi.

Uske adh-jale ghar ke baahar uske abba aur ammi ki laash thi aur ghar ke
darvaaje par uski choti bahan fatima ki laash nirvastra padi thi. gali main
charo taraf kuch aisa hi maahol tha.


Zarina ko kuch samajh nahi aata. uski aankho ke aage andhera chaane lagta hai aur vo phoot-phoot kar rone lagti hai.


Itne mein aditya bhi vaha aa jaata hai.

Zarina use dekh kar bhaagne lagti hai….par aditya teji se aage badh kar uska muh daboch leta hai aur use ghasit kar vaapis apne ghar mein laakar darvaaja band karne lagta hai.


Zarina ko sofe ke paas rakhi hokey nazar aati hai.Vo bhaag kar use utha kar aditya ke pet mein maarti hai aur teji se darvaaja kholne lagti hai. par aditya jaldi se sambhal kar use pakad leta hai

“paagal ho gayi ho kya… kaha ja rahi ho.. dange ho rahe hain baahar. Insaan… bhediye ban chuke hain.. tumhe dekhte hi noch-noch kar kha jaayenge”

zarina ye sun kar hairaani se puchti hai, “d.d..dange !! kaise dange?”

“Ek group ne train phoonk di…….. aur dusre group ke log ab ghar-baar phoonk rahe hain… charo taraf…ha-ha-kaar macha hai…khun ki holi kheli ja rahi hai”

“Mere ammi,abba aur fatima ne kisi ka kya bigaada tha” ---zarina kahte huve
subak padti hai

“bigaada to un logo ne bhi nahi tha jo train mein the…..bas yu samajh lo ki
karta koyi hai aur bharta koyi… sab raajnitik shadyantra hai”

“tum mujhe yaha kyon laaye, kya mujh se badla ley rahe ho ?”

“jab pata chala ki train phoonk di gayi to main bhi apna aapa kho baitha tha”

“haan-haan minority ke khilaaf aapa khona bada aasaan hai”

“mere ma-baap us train ki aag mein jhulas kar maare gaye, zarina...koyi bhi apna aapa kho dega.”

“to meri ammi aur abba kaun sa zeenda bache hain.. aur fatima ka to rape huva
lagta hai. ho gaya na tumhaara hisaab baraabar… ab mujhe jaane do” zarina rote huve kahti hai.

“Ye sab maine nahi kiya samjhi… tumhe yaha utha laaya kyonki fatima ka rape
dekha nahi gaya mujhse….abhi raat ke 2 baje hain aur baahar curfew laga hai.
Maahol theek hone par jahaan chaahe chali jaana”

“Mujhe tumhaara ahsaan manjoor nahi…main apni jaan de dungi”

Zarina kitchen ki taraf bhaagti hai aur ek chaaku utha kar apni kalaayi ki nuss
kaatne lagti hai

Aditya bhaag kar uske haath se chaaku cheen-ta hai aur uske muh par jor se ek thappad maarta hai.

Zarina thappad ki chot se ladkhada kar gir jaati hai aur phoot-phoot kar rone
lagti hai.

“Chup ho jao.. baahar har taraf vahasi darinde ghum rahe hain.. kisi ko shak ho gaya ki tum yaha ho to sab gadbad ho jaayega”

“kya ab main ro bhi nahi sakti… kya bacha hai mere paas ab.. ye aansu hi hain.. inhe to bah jaane do”

Aditya kuch nahi kahta aur bina kuch kahe kitchen se baahar aa jaata hai.
zarina rote huve vaapis ushi kamre mein ghuss jaati hai jishmein ushki kuch der pahle aankh khuli thi.

-----------------------



Agli subah zarina uth kar baahar aati hai to dekhti hai ki aditya khaana bana
raha hai.

Aditya zarina ko dekh kar puchta hai, “kya khaaogi ?”

“Zahar ho to de do”

“Vo to nahi hai.. tute-phute paraanthe bana raha hun….yahi khaane
padenge..….aaoouch…” aditya ki ungli jal gayi.

“Kya huva…. ?”

“Kuch nahi ungli zal gayi”

“Kya pahle kabhi tumne khaana banaaya hai ?”

“Nahi, par aaj…banaana padega.. ab vaise bhi mammi ke bina mujhe khud hi banaana padega ”

Zarina kuch soch kar kahti hai, “hato, main banaati hun”

“Nahi main bana lunga”

“Hat bhi jao…jab banaana nahi aata to kaise bana loge”

“Ek shart par hatunga”

“Haan bolo”

“Tum bhi khaaogi na?”

“Mujhe bhook nahi hai”


“Main samajh sakta hun zarina, tumhaari tarah maine bhi apno ko khoya hai. Par zeenda rahne ke liye hamein kuch to khaana hi padega”

“Kiske liye zeenda rahun, kaun bacha hai mera?”

“Kal main bhi yahi soch raha tha. Par jab tumhe yaha laaya to jaise mujhe jeene
ka koyi maksad mil gaya”


“Par mera to koyi maksad nahi………”

“Hai kyon nahi? Tum is dauraan mujhe acha-acha khana khilaane ka maksad bana lo… vakt kat jaayega. Curfew khulte hi main tumhe suraksit jaha tum kaho vaha pahuncha dunga” – aditya halka sa muskura kar bola

Zarina bhi uski baat par halka sa muskura di aur boli, “chalo hato ab…. mujhe banaane do”

kramashah............




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