Wednesday, July 22, 2009

पहली बार




पहली बार
बडी हुई लडकी
तो चली गई बिना उंगली थामे
सड़क के पार !

उस दिन लड़की को लेकर
डरा पिता पहली बार

पहली बार
लडकी बड़ी हुई
और पहली बार बडा हुआ
लड़की से ज्यादा
पिता का डर.....





Pahli bar
badi hui ladki
to chali gayi bina ungli thame
sadak ke par !

us din ladki ko lekar
dara pita pahli bar

pahali bar
ladaki badi hui
aur pahali bar bada hua
ladki se jyada
pita ka dar......












छुपा कर ग़मों को जब हम मुस्कराते हैं



छुपा कर ग़मों को जब हम मुस्कराते हैं
रेगिस्तान में भी कई फूल खिल जाते हैं
कहॉ चलती है हमारे चलाने से ज़िंदगी अक्सर
मुस्कराना पड़ता है जब अपने मिल जाते हैं
तिनके-तिनके सा जुटाकर खुशियॉ प्यारी
लम्हा-लम्हा बॉटकर दिलों को सजाते हैं
बता दो अपने ग़मों को खुलकर मुझे
गले मिलने से कई राह खुल जाते हैं
बहो जलधारा सा अलमस्त ज़िंदगी लेकर
बेफिक्री हो तो हर दाग़ धुल जाते हैं.
आवेग सिंह
23.07.09
Chhupa kar ghamon ko jab hum muskrate hain
Registan mein bhi kayee phool khil jate hain
Kahan chalati hai chalane se zindagi aksar
Muskrana padata hai jab apane mil jate hain
Tinake-Tinake sa jutakar khushiyan pyari
Lamha-Lamha bantkar dilon ko sajate hain
Bata do apane ghamon ko khulkar mujhe
Gale milane se kayee raah khul jate hain
Baho jaldhara sa almast zindagi lekar
Befikri ho to her daaghdhul jate hain.

Aaweg Singh















वही शाम वही रात और वही चांदनी,





वही शाम वही रात और वही चांदनी,

कुछ अलग है तो बस, ये बहती आँखें,

इनमे तन्हाई और चाहत का बसेरा …

कितने गुज़रे पर आज भी एक सावन बसा रखा है.....





Wahi sham wahi raat aur wahi chandni,


Kuchh alag hai to bas, ye behti ankhein,


Inmein tanhai aur chahat ka basera...


Kitne guzre par aaj bhi ek Saawan basa rakha hai...











जिसको जो कहना हो, उसको वो कहने देना,



जिसको जो कहना हो,
उसको वो कहने देना,
मेरी प्रीत को,
प्रीत “निधि” की रहने देना,
तुम कोई नाम न देना,

जैसा तुमने जाना था,
जैसा तुमने माना था,
प्रीत का रूप,
वैसे ही सदा, “सादा रूप ” तुम रहने देना,
तुम कोई नाम न देना.......






Jisko jo kehna ho,

usko wo kehne dena,

Meri preet ko

Preet 'Nidhi' ki rehne dena

Tum koi naam na dena,

Jaisa tumne jaana tha,

Jaisa tumne maana tha,

Preet ka roop,

Waise hi sada, "saada roop" tum rehne dena,

Tum koi naam na dena.......













विश्वासपात्र



विश्वासपात्र


प्रेषक -- ऋचा

एक अंग्रेज सिपाही, जिसकी बीबी बहुत खूबसूरत थी, को अचानक लड़ाई के मैदान से बुलावा आ गया। उसकी गैरमौजूदगी में उसकी बीबी कहीं किसी और से आंखे चार न कर बैठे इस डर से उसने अपनी बीबी को एक कमरे में बन्द किया और चाबी अपने एक विश्वासपात्र मित्र को देकर कहा - मैं युध्द में भाग लेने जा रहा हूं। यदि मैं दस दिनों तक नहीं लौटूं तो तुम इस चाबी से ताला खोलकर उसे आजाद कर देना ।

इतना कहकर वह चल दिया।

अभी वह थोड़ी ही दूर पहुंचा था कि उसने देखा उसका मित्र घोड़े पर सरपट दौड़ता हुआ उसे आवाज देता हुआ चला आ रहा है।

मित्र पास आते ही चिल्लाया - धोखेबाज ! तू मुझे गलत चाबी देकर जा रहा है। इससे तो ताला खुल ही नहीं रहा ......













चुटकुला: देहाती स्टाईल!




चुटकुला: देहाती स्टाईल!

शहर के एक शिकारी ने देहात में एक बत्तख को मारा। जब वह उसे लेने पहुँचा, तभी एक किसान ने उसे रोका और दावा किया कि क्योंकि यह बत्तख उसके खेत में है, तो तकनीकी तौर पर उसका है। कई मिनट के विवाद के बाद, किसान ने यह प्रस्ताव दिया कि इस मामले कोदेहाती तरीकेसे निपटा जाय।

ये देहाती तरीका क्या होता है?” शहरी ने पूछा।

यहाँ देहातों में,” किसान ने कहा, “जब दो लोगों के बीच कोई झगङा या विवाद होता है तो एक आदमी दूसरे के अंडकोषों पर प्रहार करता है, फिर दूसरा पहले वाले पर। और इसी प्रकार जो आदमी अंत तक खङा रहता है, जीत जाता है।

शहरी आश्चर्यचकित होकर मान जाता है और खुद को तैयार कर लेता है। किसान अपनी पूरी ताकत से उसके अंडकोषों पर लात से प्रहार करता है। शहरी को ऐसी पीङा होती है जो कभी पहले हुई थी। वह ज़मीन पर गिर पङता है और बच्चे की तरह रोने लगता है और उसके मुँह से खून निकल पङता है। अंततः वह अपने पैरों पर खङा होने में कामयाब होता है, “ठीक है, अब मेरी बारी है।

किसान खिसियाता हुआ कहता है।अच्छा-अच्छा, ठीक है, तुम जीते। बत्तख तुम ही रख लो।


भैंस चालीसा

भैंस चालीसा

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते















Friday, July 10, 2009

जोक-- ताऊ और रोजी रोटी

जोक-- ताऊ और   रोजी रोटी


ताऊ थानेदार की पोस्ट से रिटायर हो गया ! ताऊ खाली बैठ नही सकै था !
किसी ने ताऊ को सलाह दे दी कि ताऊ जूतो की दुकान खोल लो, आज कल जूते बेचने मे बहुत कमाई है !
सो ताऊ ने जूते बेचने की दुकान खोल ली !
एक दिन ताऊ का कोई जानकार उधर से जा रहा था कि ताऊ को पहचान कर वो जूते
खरीदने दूकान मे आ गया ! और थोडा आश्चर्य से बोला - ताऊ आप तो थानेदार थे ?
फ़िर ये जूतों की दुकान कैसे खोल ली ?
इब ताऊ बोल्या - म्हारा तो यो पुराना धंधा सै जूतों का !
जानकार - वो कैसे ? जरा साफ़ साफ़ समझाओ ताऊ ?
ताऊ - जी, पहले जब हम थानेदार थे तब लोगो को जूते मार मार कर रोजी रोटी
कमाया करते थे ! और अब लोगो को जूते बेच बेच कर रोजी रोटी कमाते हैं !


--
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6-http://horar-fantency.blogspot.com/
7-http://hindijokeshayari.blogspot.com/
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ --  raj

joke- TAU vs T.T

joke- TAU vs T.T


ताऊ बैठा हरियाणा रोड्वेस् की बस मै सफ़र करे था. रोहतक ते जावे था भिवानी. कलनौर आते ही टी.टी आ गया टिकट चेक करण. ताऊ धोरे जा के बोल्या , ला ताऊ टिकट दिखा. ताऊ ने अपणा झोला खोल्या , लत्ता के बीच मै ते एक प्लास्टिक् की थैली काढी, ऊस्के माह् ताऊ ने रोटी बान्ध रखी थी. रोटी के बीच ताऊ ने धर राख्या धडी पक्का चूर्मा. ताऊ ने धीरे धीरे चूर्मे मे हाथ घुमा के टिकट काढि अर टी.टी कान्नी बढा दी. टी.टी ने टिकट का हाल देख्ह्य, कती ए चीकणी पडी थी. छो मे आ के बोल्या , अह रे ताऊ यो भी किम्मे धरण की जगह सै? सारी टिकट भुन्डी ढाल चिकणी कर दी, इस्मे के देखू मै? ताऊ लाहप्सी सा मुह बना के बोल्या , के करू बेटा बुड्डा आदमी सू , टिकट् कद्दे खू न जा, इसे खातिर घ्हणी सम्भाल् के धर रखी थी. टी.टी बोल्या, चूर्मे ते सेफ जगह् कौणी थी? न्यू कह् के टी. टी आगे चला गया. ऊसी ताऊ धोरे एक दूसरा ताऊ भी बैठ्या था, वा न्यू बोल्या अह रे बावली बूच, चूर्मा भी कोई टिकट धरण् कि जगह् से ? तू भी बुढापे मै कती बावला हो गया. ताऊ शैड् देनी सी बोल्या, इसा बावला भी ना सू, २ साल ते इसी टिकट पे सफ़र कर रहया सू.
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जोक- बस का बोनट

जोक- बस का बोनट


ताई को शहर जाणा था ! सो ताई चढ ली शहर जाण आली बस मै !
बस मै घणी ठाडी भीड हो री थी ! बैठण की जगह कितै भी नही थी !
आगे आगे की सब सीटों पै कालेज जाण आले छोरे बैठे थे !
ताई को अनदेखी सी करके सारे छोरे सीटों पै जमे ही रहे !
कोई भी ना उठया ! ताई नै थोडी देर तो इन्तजार किया फिर
वहीं बस के बोनट पर बैठ गई !
थोडी देर बाद दो तीन कालेज जाण आली छोरियां अगले स्टाप
से बस मै चढी ! उन छोरीयां के चढते ही बैठे हुये लडकों ने
उनके लिये सीट खाली कर दी और अपनी सीटों पर उन छोरियों
को बैठा लिया और खुद खडे हो लिये ! ये देख कर ताई को
किम्मै छोह (गुस्सा) सा आगया ! ताई उन लडकों से तो किम्मै
ना बोली पर उन छोरियां तैं बोली - इतना इतराणै (गुरुर) क्युं
लाग री हो ? आज नही तै कल थमनै भी इसी बोनट पै आणा सै |

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जोक -- ताऊ और ताई

जोक -- ताऊ और ताई

ताऊ घणी दारू घणी पीण लाग गया अर ताई परेशान होगी ! एक दिन ताई ने
अक्ल लडाई अर रात न जद ताऊ घर आया तो भूतनी
की जैसी डरावनी शक्ल बनाके ताऊ न डरान लाग गी अर बोली -
दारू पीना बन्द करदे नहीं त आज मेरे त नी बच सकदा !
ताई ने सोच्या था कि भूतनी के डर त ताऊ दारू पीना छोड देगा !
ताऊ ने जवाब दिया - अरे भूतनी, तू खुद की खैर चाहव् है तो जल्दी
निकल ले आड़े त ! बस मेरी घर आली (ताई) आन आली होगी वा तेरे ते भी
बडी भूतनी अर चुडैल सै ! फ़िर उसते तन्ने कौन बचावगा ?



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जोक --पीटें तो सब की घर आली सें


जोक --पीटें तो सब की घर आली सें

म्हारे गाम में एक बाणिया था... सतनारायण नाम था ....उसके घर में इ दूकान थी... तो एक दिन वो बाणिया अपनी घर आली धोरे "पिटन" लाग रा ...... एर गाम के एक जाट ने देख लिया जो किमे सौदा लेवन आया था .....

इब जाट तो रह्या जाट ..... किलकी मार की बोल्या ..." रे देखो बाणीये ने उसकी घर आली पीटन लाग री...." ....आर दो चार और कठे कर लिए....


बाणिया फट देनी सी बाहर लिकड़ की आया एर बोल्या ..... " अड़ आडू जाटो... पीटें तो सब की घर आली सें ..... मेरा बस बेरा पाट गया"












जोकं --वाह रे बेरोजगारी…



वाह रे बेरोजगारी…

नदी में डुबते हुए आदमी ने पुल पर चलते हुए आदमी को
आवाज़ लगायी "बचाओ… बचाओ…"

पुल पर चलते हुए आदमी ने रस्सी फेकी और कहा "आओ…"

नदी में डुबता आदमी रस्सी नही पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
"मै मरना नही चाहता… ज़िन्दगी बडी महंगी है…
कल ही तो मेरी एक MNC मे नौकरी लगी है…"

इतना सुनते ही बचाने वाले आदमी ने रस्सी खींच ली
और भागते हुए MNC कम्पनी पहुचा
उसने वहां की HR Manager को कहा
" अभी अभी आपकी कम्पनी का एक आदमी डुबकर मर गया है
और एक जगह खाली कर गया है… मै बेरोज़गार हु, मुझे ले लो"

HR Manager बोली
"दोस्त्… तुमने कुछ देर कर दी…
हमने पहले ही उस आदमी को नौकरी दे दी है
जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले यहां आया













जोकं - दूकानदार

जोकं - दूकानदार


एक बार एक ताई एक दुकान पे सामान लें गयी उसने देख्या दुकान में छोटी सी छोरी बैठी है (8-10 साल की) ! उसने देख के बुढिया सामान लेना तो भूल गयी आर हो गयी शुरु "आंहे आडे इतनी चीज़ धरी खान की तेरा जी नहीं करदा खान ने " छोरी " करे है " ताई " तो फेर खांदी क्यूँ ना" छोरी " ताई जे में खाउन्गि तो मेरे बाबु ने बेरा पाट ज्यागा अर वो मेरे मारेगा इसे मारे चाट चाट के उलटी ए डब्बे में घाल देऊन हूँ "!












जोकं -मरा त सब करे पर तू त कती ए जी तोड़ रहा सै....

जोकं -मरा त सब करे पर तू त कती ए जी तोड़ रहा सै...

एक बार की बात सै.....एक बै एक जाट मर ज्या सै ....उसके घर पे सारे कट्टे हो ज्या सै...पडोसी...गाम आले...रिस्तेदार....फेर programme बने सै इसने फूक दो...फूकन त पहला एक रसम होया करे उसमे मुर्दे ने नवाहाया करे....तह वे भी मुर्दे ने एक कुर्सी पे बिट्टा दे सै अर नवाहना शुरू कर दे सै.....पर मुर्दा के करे...कदे इन्घेन पड़ ज्या...कदे परेन पड़ ज्या....अर्र कदे आगे पड़ ज्या..... सारे करदे दुखी हो ज्या सै ....घनी ए वार हो ज्या सै....एक बूढे के भुंडा छो उठ ज्या सै ..........अर बूढा मुर्दे ताई बोल सै............अ मेरे यार....मरा त सब करे पर तू त कती ए जी तोड़ रहा सै....













जोक -में क्यूँ भाजू भाज ले तू रेत तो ताने मारा है


एक बार सत्तू अर् फत्तू जंगल में के जावें थे इतने में आगे तें शेर आ गया सत्तू ने झट दे सी रेत का मुठा भरा अर् शेर की आँख में मारा ! सत्तू बोला फत्तू ताहि भाज ले ! फत्तू बोल्या में क्यूँ भाजू भाज ले तू रेत तो ताने मारा है !














हिन्दी जोकं - रामफल की शायरी


हिन्दी जोकं - रामफल की शायरी


एक बै रामफल शहर मैं चला गया . शिला बाई पास रोहतक में
एक कवि समेलन होने लाग रहा था . रामफल भी थोडी बहुत तुक
बंदी कर लिया करता उसने भी आपना नाम कविया आली लिस्ट मैं
लिख वा दिया . अब दो -चार कविया पाछे आया नंबर रामफल का .
मंच पै जाके सुरु करा आपना शेर ...
.... खागड़ ( सांड) पै खागड़ खागड़ पै खागड़ खागड़ पै खागड़
दर्शक बोले -- वाह भाई वाह वा भाई वा .
रामफल फेर बोल्या --- खागड़ पै खागड़ खागड़ पै खागड़ खागड़ पै खागड़
दर्शक फेर बोले --- वा भाई वा वा भाई वा
रामफल इबके तेज़ आवाज़ मैं बोल्या --- खागड़ पै खागड़ खागड़ पै खागड़ ...........
इबके दुखी हो कई बोले --- यो किसा शेर कह सै भाई तू .
रामफल बोल्या --- अरे तुम शेर कै गोली मारों . इतने खागड़ उपरा तली
चडा दिए इनका बैलेंस देखो जै एक भी पडा हो तै













Thursday, July 9, 2009

जोकं --भाई फुट गया हो त आधा मेरे तै भी दिए"

जोकं --भाई फुट गया हो त आधा मेरे तै भी दिए"


एक बार की बात सै.....एक बै एक भाई का ब्याह होवे सै.....उसके गाम में एक आंधा रहा करता ...तह गाम आले कहवे सै के इस आंधे ने भी बारात में ले चलो...इसका भी जी लग ज्यागा अर्र धर्म भी हो ज्यागा.....त आंधा चल पड़े सै बारात में....
बारात पहुच जा सै दुसरे गाम में....इब जो छोरी आले थे वे थोड़े माडे ब्योत के थे....उनने खान पीन का program छात पे कर राख्या था....छात पे ए पतल टेक राख्यी थी ...पर दिकत या बनी उस दिन तेज हवा चालन लग रही थी....अर्र हवा में पत्तल न उड़ ज्या न्यू करके पत्तल पे रोडे भी टेक राखे थे......
इब बाराती ऊपर चढ़ ले सै छात पे.....अर्र छात की डोली भी न थी.....नु सोच के ...कदे आंधा निच्चे गाल में न पड़ ज्या...वे उसने बिट्टा दे सै....
आंधा नु सोचे सै..के भाई जिमनवार चालू होगी अर्र तू भी इब रोटी खा ले...आंधा मार सै हाथ अर्र रोडे ने ठा ले सै....आंधा नु सोचे सै यु त लड्डू सै....अर्र पहला इसे की सेवा ले ले.......आंधा कदे बुड्के मारे अर्र कदे उसने दांता गेला खुरचे अर्र आपने कर्मा ने रोवे के आंधा समझ के कई दिन पुराना बासी लड्डू धर दिया मेरे आगे.....
घनी वार होले सै आंधे ने कुस्ती लड़ते रोडे गेला...आखरी में आंधे के छो उठ जा सै अक यु त फूटता ए कोना.....अर्र आंधा उस रोडे ने बगा के मारे सै.....आंधे के स्य्म्ही एक और भाई बैट होवे सै ....रोड़ा उसके मत्थे में जाके लगे सै......अर्र वो भाई भुंडा रुक्का मारे सै...."फुट गया रै" .......आंधा दुखी होके बोले सै " भाई फुट गया हो त आधा मेरे तै भी दिए" .........













हिन्दी जोकं - जाट और भोले शंकर


हिन्दी जोकं - जाट और भोले शंकर


भाई एक बै एक जाट का ब्याह ना होवे था . वो गया शिवजी भोले
के मन्दिर मैं और बोला भोले शंकर जै तू मेरा ब्याह करवादे तै
मैं तेरे झोटा चडाउंगा . इब कुछ दिन बाद उसका ब्याह हो गया .
वो तै आगले ही दिन ले कै पहुँच गया मन्दिर मैं . पर बलि देन
खातर कीमे फरसा - कुल्हाडी ल्यानी भूल गया . इब बाँध झोटे
नै शिव लिंग कै और फरसा - कुल्हाडी लेने घर चला गया .
इब झोटे नै एक भंस दिख गी . झोटा भाज लिया शिव लिंग समेत
पाड़ कै . इब आगे आगे झोटा और पाछे पाछे शिव शंकर घिसट ते
जान लाग रे . जब झोटा देवी माई के मन्दिर आगे तै गुजरा
तो देवी माई बोली -- शिव शंकर जी आज एशि हालत में कैसे . क्या बात हो गई
शंकर जी बोल्ये -- अरे देवी माई ताने बामण - बनिए पूजै सै जिस दिन
जाटा के फसगी तो न्यू ये घिसड्ती हांडे गी .

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Monday, July 6, 2009

Spirit Of The Wild SAC


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Thursday, July 2, 2009

माँ की व्यथा



मेरी व्यथा
अनकही सही
अनजानी नहीं है
मुझ जैसी
हज़ारों नारियों की
कहानी यही है

जन्म से ही
खुद को
अबला जाना
जीवन के हर मोड़ पर
परिजनों ने ही
हेय माना

थी कितनी प्रफुल्लित मैं
उस अनूठे अहसास से
रच बस रहा था जब
एक नन्हा अस्तित्व
मेरी सांसों की तार में
प्रकृति के हर स्वर में
नया संगीत सुन रही थी
अपनी ही धुन में
न जाने कितने
स्वप्न बुन रही थी

लम्बी अमावस के बाद
पूर्णिमा का चाँद आया
एक नन्हीं सी कली ने
मेरे आंगन को सजाया

आए सभी मित्रगण, सम्बन्धी
कुछ के चहरे थे लटके
तो कुछ के नेत्रों में
आंसू थे अटके
भांति भांति से
सभी समझाते
कभी देते सांत्वना
तो कभी पीठ थपथपाते
कुछ ने तो दबे शब्दों में
यह भी कह डाला
घबराओ नहीं, खुलेगा कभी
तुम्हारी किस्मत का भी ताला

लुप्त हुआ गौरव
खो गया आनन्द
अनजानी पीड़ा से यह सोचकर
बोझिल हुआ मन
क्या हुआ अपराध
जो ये सब मुझे कोसते हैं
दबे शब्दों में
मन की कटुता में
मिश्री घोलते हैं

काश! ममता में होता साहस
माँ की व्यथा को शब्द मिल जाते
चीखकर मेरी नन्हीं कली का
सबसे परिचय यूँ कराते
न इसे हेय, न अबला जानो
'खिलने दो खुशबू पहचानो'

BY DEEPA JOSHI,















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